आरक्षण का सच | मेरिटोक्रेसी Vs सामाजिक न्याय
आरक्षण का सच | मेरिटोक्रेसी
Vs सामाजिक न्याय
नमस्ते दोस्तों !... आपका
स्वागत है... आज जिस मुद्दे पर हम बात करने वाले हैं उसके बारे में विडंबना यह है कि
अधिकांश लोगों ने उसके बारे में पहले से ही राय बना रखी उस पर बहस पहले भी होती रही
है लेकिन जिसकी राय जो है अनफॉर्चूनेटली व बदलती नहीं लेकिन फिर भी इस मुद्दे पर बात
करना लगातार बात करना जरूरी है. इसलिए बात करेंगे, सवाल आज हम यह उठाने वाले हैं कि क्या वास्तव में जाति आधारित आरक्षण को खत्म
कर देना चाहिए? क्या होगा अगर जाति आधारित आरक्षण को खत्म कर
दिया जाए क्योंकि बार-बार यह सवाल उठाया जाता है और लोग इस मांग को रखते हुए नजर आते
हैं कि जाति आधारित आरक्षण को बंद कर देना चाहिए. तो समझते हैं
कि क्या होगा अगर देश से जाति आधारित आरक्षण खत्म कर दिया जाए तो इससे क्या हमें वह
मेरिटोरियस के चलते सब कुछ अच्छा अच्छा होगा या फिर इससे वह करोड़ों लोग जिनको थोड़ा
बहुत सिस्टम में जगह मिलनी शुरू हुई है वो एक्सक्लूड हो जाएंगे, क्या उनका वंचन फिर से शुरू हो जाएगा नॉर्मली रिजर्वेशन पर जो बातचीत की जाती
है उसको बारबार आर्थिक नजरिए से देखा जाता है इकोनॉमिक लेंस से देखने की कोशिश की जाती
है जबकि सच्चाई क्या है सच्चाई यह है कि आरक्षण का सवाल आर्थिक बराबरी का सवाल नहीं
है आरक्षण का सवाल गरीबी उन्मूलन का सवाल भी नहीं है यह दरअसल सामाजिक न्याय का सवाल
है. यह हिस्टोरिकल इंजस्टिस को ठीक करने का सवाल है और यह इंस्टीट्यूशनल डायवर्सिटी
को सुनिश्चित करने का सवाल है तो इसे ही समझने की जरूरत है कि क्यों क्यों हमें ऐसा
लगता है कि बहुत सारी जनता यह मानकर चलती है बहुत सारे लोग ये मानकर चलते हैं कि ये
जो आरक्षण है यह रास्ते की बाधा है या कुछ लोग ये मानकर चलते हैं कि ये जो आरक्षण है
यह कुछ जातियों और वर्गों को दिया जाने वाला एक किस्म की खैरात है एक किस्म की चैरिटी
है सच्चाई यह है कि आरक्षण को ऐतिहासिक तौर पर वर्तमान के हिसाब से किसी भी नजरिए से
देखें उसे हमें एक सोशल करेक्शन की तरह देखना पड़ता है उसे चैरिटी की तरह देखने से
काम नहीं चलता अब जरा सोच के देखिए कि आरक्षण आज से शुरू नहीं होता है आरक्षण दरअसल
देश की आजादी से भी शुरू नहीं होता है आरक्षण का हमें जो शुरुआती समय देखने को मिलता है
वह है 1921 में यानी महात्मा गांधी अभी भारत की धरती पर पहुंचे
थे वे अभी शुरुआत कर रहे थे अपने एक्टिविज्म की तभी जो मद्रास प्रेसिडेंसी है वहां
पर हमें ऑलरेडी आरक्षण की शुरुआत जाति के आधार पर 1921 से मिल
जाती है उसके बाद देश आजाद होता है और देश के आजाद होने के बाद एक संविधान सभा गठित
होती है संविधान सभा इस बात पर बहुत थ्रेड बेयर डिस्कशन करती है और आर्टिकल 154 और आर्टिकल 164 यह सुनिश्चित करते हैं कांस्टिट्यूशन
में कि इन जो पिछड़े वर्ग हैं यह जो वे क्लासेस हैं जो ऐतिहासिक तौर पर पिछड़ गई हैं.
उन्हें आरक्षण दिया जा सकता है यहां पर उस गलतफहमी से निकली जहां बार-बार
कहा जाता है कि आरक्षण केवल 10 साल के लिए था हम लेजिसलेटिव आरक्षण
की बात नहीं कर रहे हैं हम एग्जीक्यूटिव में आरक्षण की बात कर रहे हैं हम स्कूलों कॉलेजों
में आरक्षण की बात कर रहे हैं और उसके साथ ऐसे कोई 10 साल के
वाला कोई जो नियम है कोई बंधन है कभी भी नहीं था. लेकिन फिर भी वह सवाल बना रहता है
कि क्यों ना इस आरक्षण को खत्म कर दिया जाए आखिर 75 साल हो चुके
हैं और बहुत सारे लोगों का यह मानना है कि देखिए इतने साल में तो जो कुछ वंचन था वो
समाप्त हो गया होगा बट इज इट द केस क्या वास्तव में जाति कास्ट आज भी मैटर करती है
या नहीं करती है अगर आप आय की तुलना में कास्ट यानी कि आमदनी की बजाय जाति के संदर्भ
को समझने की कोशिश करें तो आपको समझ में आएगा कि दरअसल वंचन में आर्थिक वंचित की तुलना
में आज भी जातिगत वंचित की स्थिति बहुत ज्यादा है आमतौर पर बिना डाटा के बात करने का
कोई औचित्य नहीं तो चलिए कुछ बेसिक सी बात करते हैं क्या आप जानते हैं कि एससी एसटी
स्टूडेंट्स का ड्रॉप आउट रेट 40 % ज्यादा
है अपर कास्ट की तुलना जिसका क्या मतलब है जिसका मतलब है कि अधिकांश विद्यार्थी या
तो स्कूल पहुंच नहीं पाते हैं इन वर्गों से और अगर पहुंच पाते हैं तो उनमें से स्कूल
छोड़ देने वाले लोगों का प्रतिशत अपर कास्ट की तुलना में 40 फीसद
ज्यादा है अग आप इसमें सिर्फ इस बात को भी जोड़ ले कि आपके माता-पिता यानी कि इन बच्चों
की पिछली पीढ़ी जो सीनियर पीढ़ी है उसमें लिटरेसी की क्या दर है तब आपको यह और डरावनी
पिक्चर सामने आएगी यानी कि इस पीढ़ी के लोग कम स्कूल पहुंच पा रहे हैं अधिकतर लोग ड्रॉप
आउट हो जा रहे हैं जबकि इनके माता-पिता अनपढ़ है यह स्थिति अपर कास्ट में इस पैमाने
पर नहीं है क्या घर में माता-पिता के पढ़े होने का पढ़े लिखे होने का हम लोगों की विद्यार्थियों
की परफॉर्मेंस पर विद्यार्थियों के सीखने समझने पर कोई असर नहीं पड़ता और यह डाटा जो
मैंने आपको दिया एनएसएसओ 2019 का डाटा है, यानी कि कंक्रीट डाटा है एंप्लॉयमेंट डिस्क्रिमिनेशन को देखि वे इंजीनियरिंग
कॉलेज के स्टूडेंट्स जो कि एक ही कॉलेज से पढ़े हुए हैं लगभग सिमिलर किस्म की कैपेबिलिटीज
रखते हैं आपको हैरानी होगी कि जब वह प्राइवेट एंप्लॉयमेंट के लिए जाते हैं तो पॉसिबिलिटी
ऑफ अपर कास्ट गेटिंग द जॉब इज 30% हायर फॉर द सिमिलर क्वालिफिकेशन,
सिमिलर एबिलिटीज क्यों होता
है इसका बहुत आसान सा तरीका है कि जो सिलेक्शन कर रहा है उसकी जाति और जो सिलेक्ट हो
रहा है उसकी जाति के बीच एलाइनमेंट होता है और प्राइवेट सेक्टर में कोई रिजर्वेशन नहीं
है रिप्रेजेंटेटिव ब्यूरोक्रेसी की बात कीजिए हम लोग अक्सर बात करते हैं नौकरशाही की
75 साल हो चुके हैं लगातार रिजर्वेशन है इस साल का गवर्मेंट ऑफ
इंडिया का डीओपीटी का 2023 का डीओपीटी का डाटा है जो बताता है
कि बावजूद 75 साल हो जाने के एससी एसटी कैटेगरी में आईएएस जो
है उनकी जो कुल प्रतिशत है वह 8 फीदी है होना कितना चाहिए था
केवल रिजर्वेशन मानकर चले तब भी हमें देखना चाहिए कि वो 25% होना
चाहिए था लेकिन केवल 8% आईएएस आपको एससी-एसटी कैटेगरी से दिखाई देते हैं क्या वास्तव में यह एकमात्र कारण है या जो
आप आर्थिक कारण बार-बार दिया जाता है कि नहीं आर्थिक आधार पर ही केवल आरक्षण होना चाहिए
यह अर्थ का मतलब आमदनी और वेल्थ इन दोनों को अगर आप देख ले तो आपको समझ में आएगा कि
भारत की जो आबादी है उसमें 60% इंडिया की वेल्थ है वह टॉप 10% के साथ है और उनमें एससी-एसटी नेगलिजिबल है नेगलिजिबल
है लेस देन 5% इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं यह डाटा जो है इक्वलिटी
डाटाबेस से आता वर्ल्ड इक्वलिटी डेटाबेस 2022 का डाटा है यह कुछ
डाटा थे जो आपके सामने रखे हैं यह बताने के लिए कि दरअसल जो आरक्षण का सवाल है वह सवाल
एक व्यापक सवाल है उस सवाल को कथित मेरीटोक्रेसी के जो का जो मिथ होता है जो मिथक है
मेरिट का उससे आप नहीं समझ सकते क्योंकि बार-बार यह कहा जाता है कि अगर आपने आरक्षण
के को जारी रखा तो उससे मेरिटोरियस नहीं है जरा थोड़ा सा मेरिट क्रेसी के इस मिथक को
और समझने की कोशिश करते हैं कि मेरिट क्रेसी का मतलब क्या है क्या अच्छे स्कूलों को
एका एक्सेस अच्छे ट्यूशन फी अंग्रेजी माध्यम से पढ़ना और एक सोशल कैपिटल का होना अगर
इनके आधार पर निकलने वाली चीज को आप जांचना शुरू करेंगे तो मेरिट किस में दिखाई देगी
स्वाभाविक है कि जिन लोगों के पास यह एक्सेस है एक्सेस टू गुड एजुकेशन गुड स्कूल एंड
द कल्चरल एंड सोशल कैपिटल विदन द फैमिली उन लोगों को आप जब भी जांचें अगर इन आधारों
पर जांचें जो आधार इन चीजों पर निर्भर करते हैं तो उनमें ज्यादा मेरिट दिखाई देगी लगातार
स्टडीज बताती हैं कि जो मेरिट है यह मेरिट आमतौर पर आपकी कल्चरल और सोशल कैपिटल से
बहुत गहरे प्रभावित होती है उसे दिखाई देती है इन अदर वर्ड्स हम जो कहने की कोशिश कर
रहे हैं वह यह है कि जिसे हम मेरिटोरियस जिसमें आपकी कोई भूमिका नहीं थी ये वे प्रिविलेजेस
है जो आपको इसलिए मिले कि आप एक परिवार विशेष में पैदा हुए इन प्रिविलेजेस को सो कॉल्ड
मेरिटोरियस वजह है कि जिन लोगों के पास आरक्षण नहीं है इस प्रिविलेज वर्ग से आने वाले
व वे उसके बावजूद आरक्षण के अभाव के बावजूद तमाम नौकरियों में तमाम सत्ता वाली जगहों
में ज्यादा प्रतिनिधित्व पाते हैं जहां ओपन कंपटीशन की बात होती है पब्लिक एग्जामिनेशंस
की बात होती है यूपीएससी की बात होती है नीट की बात होती है जेई की बात होती है वहां
पर एक्सेस टू द इकोसिस्टम ऑफ कोचिंग सेंटर एक्सेस टू द इकोसिस्टम ऑफ अदर फैक्टर्स ये
डिफरेंशिएबल अलग मात्रा में अवेलेबल है अपर कास को दलित्स को ओबीसी को ये सबको बराबर
मात्रा में नहीं मिल रहा है कॉर्पोरेट इंडिया की बात करें ऑलमोस्ट 95%. 95 पर इज पॉपुलेशन आउट ऑफ 245
सुप्रीम कोर्ट जजेस सो फार सिंस इंडिपेंडेंस ओनली सेवन वर दलित, कैन यू इमेजिन द काइंड ऑफ एक्सक्लूजन हियर, क्या आप
यहां पर इस बात को महसूस कर पा रहे हैं कि वंचन की मात्रा क्या है एक, अन्य बात कही
जाती है कि सिर्फ इसलिए आरक्षण करने की बात नहीं होती है क्योंकि इससे कुछ लोगों को
नुकसान हो रहा है बल्कि इसलिए भी आरक्षण खत्म कर देना चाहिए क्योंकि इससे एफिशिएंसी
खत्म होती है और बार-बार वो उदाहरण दिया जाता है कि क्योंकि किसी व्यक्ति ने कम प्रतिशत
पर प्रवेश लिया था उस डॉक्टर से भला कौन इलाज कराएगा क्योंकि कहने का अर्थ यह है कि
तमाम ट्रेनिंग के बावजूद तमाम शिक्षा के बावजूद यह इंजीनियर्स यह डॉक्टर्स अयोग्य होते
हैं तो फिर इसमें परेशानी किसकी है इसमें इंजीनियरिंग ट्रेनिंग की परेशानी है इसमें
दूसरी चीजों की परेशानी होगी लेकिन सच्चाई यह है कि होता नहीं है यह मिथक है लेकिन
व्हाट इज मोर इंपोर्टेंट इज दैट पीपल डू नॉट रिलाइज दैट रिजर्वेशन इन अदर वर्ड्स इंक्लूजन
अलग-अलग डायवर्सिटी का किसी वर्क प्लेस पर होना उस वर्क प्लेस की प्रोडक्टिविटी को
बेहतर करता है इंस्टिट्यूशन में इनोवेशन ज्यादा होता है अगर आप एक ही तरह के लोगों
को किसी एक इंस्टिट्यूशन पर भर देंगे तो उस इंस्टिट्यूशन में किसी किस्म के इनोवेशन
की गुंजाइश कम हो जाएगी और अगर डावर्स थिंकिंग वाला एक ऑर्गेनाइजेशन होगा तो उसमें
इनोवेशन बेहतर होगा उसमें एफिशिएंसी बेहतर होगी और यह जो पॉजिटिव डिस्क्रिमिनेशन के
खिलाफ हवा है यह केवल भारत में नहीं दिखाई दे रही इस वीडियो बनाने का जो मुख्य उद्देश्य
था जो जिस वजह से हम इस पर बात कर रहे थे वोह क्या था अमेरिका में अमेरिका में जब डोनाल्ड
ट्रंप आते हैं तो व आते ही बाकायदा घोषित तौर पर यन मस्क का सहारा लेते हुए घोषित तौर
पर यह पॉलिसी डिक्लेयर करते हैं कि अब वहां डाइवर्सिटी इक्विटी इंक्लूजन को खत्म कर
दिया जाएगा स्कूलों को स्कूल वहां पर स्टेट्स के अंडर आते हैं लेकिन चूंकि कुछ फेडरल
किस्म की सपोर्ट उनके पास होती है तो उनको बाकायदा खत लिखा गया और गया है कि अपने डीआई
डाइवर्सिटी इक्विटी इंक्लूजन के कार्यक्रमों को खत्म कीजिए जिसका मतलब यह है कि अब
अब आप यह सुनिश्चित करने की कोशिश नहीं करेंगे कि आपके क्लासरूम में अलग-अलग डावर्स
बैकग्राउंड के बच्चे अफ्रीकन अमेरिकन भी पहुंचे साउथ जो साउथ अमेरिका के के देशों से
आए हुए प्रवासियों के बच्चे भी पहुंचे एशियन भी पहुंचे भारतीय भी पहुंचे यह प्रावधान
पहले था और उसे वोह हटा देना चाहते हैं जिसका मतलब है कि अब स्कूलों में इन लोगों के
प्रतिनिधित्व के लिए कोई अलग से कोशिश नहीं की जाएगी नहीं तो फेडरल फंडिंग खत्म कर
दी जाएगी भारत में भी इसी किस्म के उधार की के स्टेप्स लेने के लिए बार-बार कहा जा
रहा है और यह एक डरावनी बात है. जबकि सच्चाई यह है कि वे देश जिन्होंने इनोवेशंस अच्छे से की हैं वहां पर साउथ
कोरिया में देखिए, जापान में देखिए वहां बाकायदा अरमेस्टिस को
अडॉप्ट किया गया है क्या हम ये कहते हैं कि वो इनएफिशिएंट लोग हैं? क्या जापान की मशीनरी जो है इनएफिशिएंट है? ये सच नहीं
आपके ऑर्गेनाइजेशन में चाहे वह ऑर्गेनाइजेशन एक प्राइवेट ऑर्गेनाइजेशन हो या वह एक
सरकारी ऑर्गेनाइजेशन हो जुडिशरी हो एग्जीक्यूटिव हो लेजिसलेच्योर होता है अब जरा इस
पॉलिटिकल रियलिटी को समझने की कोशिश करते हैं कि रिजर्वेशन वाकई जाति आधारित रिजर्वेशन
खत्म होगा या होना चाहिए क्या भारत एक डेमोक्रेसी है और इस आरक्षण का लाभ अगर हम फिलहाल
ईडब्ल्यूएस आरक्षण को छोड़ भी दें तो जिस वर्ग को मिल रहा है उसकी देश में आबादी कितनी
है क्या वास्तव में अगर आप सोच के देखें कि एससी एसटी ओबीसी यह वे वर्ग हैं जिनको जाति
के आधार पर आरक्षण मिलता है इनकी पूरे देश में आबादी क्या है यह सही है कि ओबीसी आरक्षण
27% दिया गया लेकिन 27% देश में उनकी आबादी नहीं है देश में उनकी आबादी उससे कहीं ज्यादा है एक अनुमान
कहता है कि अगर आप एससी एसटी और ओबीसी की आबादी को जोड़ लेंगे तो लगभग 50% के लगभग ओबीसी हैं और 25% जो है एससी और एसटी दरअसल
इस वर की 2011 की उसमें य लगभग 26% बनता
है तो कुल मिलाकर 70 से 75 फीसद जो है जनसंख्या
को उस समूह से आती है जिस समूह के लिए आरक्षण है क्या वास्तव में एक डेमोक्रेसी में
आप उम्मीद करते हैं कि इतने बड़े समुदाय का वंचन करके कुछ लोगों के इशारे पर फैसले
लिए जा सकते हैं स्वाभाविक है कि आप जानते हैं इसी वजह से सरकार बार-बार यह घोषित करती
है कि आरक्षण समाप्त नहीं होगा क्योंकि समझ में आने वाली बात है कुल मिलाकर हमें क्या
करने की जरूरत है पहली बात हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है. कि पॉजिटिव डिस्क्रिमिनेशन को खैरात मानना बंद किया जाए, वह किसी किस्म की चैरिटी नहीं यह रिप्रेजेंटेशन उनका हक है उन्हें मिलना चाहिए. सवाल है कि क्या प्राइवेट सेक्टर को निजी क्षेत्र को सुनिश्चित नहीं करना
चाहिए कि वहां डायवर्सिटी इक्विटी और इंक्लूजन को लेकर पॉजिटिव डिस्क्रिमिनेशन के प्रावधान
किए जाए क्योंकि दरअसल रोजगार तो सबसे अधिक प्राइवेट सेक्टर से आ रहे हैं और वहां पर
आप किसी किस्म का रिजर्वेशन नहीं देख रहे हैं किसी किस्म का पॉजिटिव डिस्क्रिमिनेशन
आम तौर पर नहीं देख रहे हैं आजकल डीआई की बात होनी शुरू हुई है मुझे मौका मिलता है
अलग-अलग कॉरपोरेट्स में जाने का और डाइवर्सिटी इक्विटी इंक्लूजन पर अपनी बातचीत रखने
का और वहां मैंने देखा है कि एक किस्म की संवेदनशीलता थोड़ी-थोड़ी
शुरू हुई है लेकिन फिर भी अभी भी बहुत कुछ काम वहां किए जाने की आवश्यकता है. दूसरी बात यह विद्यार्थियों के लिए आखिर आप इस किस्म के प्रावधानों को ‘एंटी मेरिट, एंटी डेवलपमेंट, एंटी
इक्वलिटी’ कहना क्यों शुरू करते और वास्तव में वे कौन सी ताकतें
हैं जो चाहते हैं कि आप अपने असफलताओं अपने वंच आपको रोजगार नहीं मिल पाना इत्यादि
के लिए बजाय व्यवस्था पर से मांग करने के बजाय व्यवस्था को दोषी ठहराने के अपने ही
दूसरे उन साथियों को दोषी ठहराना शुरू करें जो आप ही की तरह कोशिश कर रहे हैं एक बेसिक
सा रोजगार हासिल करने की अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने की वे कौन है जो दरअसल आपके साथियों
में आपके आपके देश के ही अन्य वासियों में आपके लिए आपके मन के लिए आपके मन में शत्रुता
पैदा करता है आपको उस पर चर्चा करने की जरूरत है क्योंकि कोई भी अरमेस्टिस दरअसल आपके
खिलाफ नहीं होता है अरमेस्टिस किसी समुदाय के खिलाफ नहीं होता है वह हिस्टोरिकल इंजस्टिस
को दूर करने के लिए होता है. तो सबसे पहले हम लोगों ने पूरे इस लेख के दौरान जिस बिंदु
को स्थापित करने की कोशिश की वह मूलत यह था कि मेरिट क्रेसी का यूटोपिया एक डरावना
यूटोपिया एक इंप्रैक्टिकल चीज है उसके नाम पर आप लगातार वंचित लोगों को दोषी ठहराना
बंद कीजिए अगर आप ऐसा करेंगे तो आप पाएंगे कि आप अपने लिए भी कुछ बेहतर कर रहे हैं.
- हर्षवर्धन
देशभ्रतार
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